हिमालय की गोद में बसा यह पौराणिक स्थल युगों—युगों से अपना महत्व बनाए हुए है। यह स्थान कैलाश पर्वत के दामन में जिला मंडी सरकाघाट तहसील के नौबाही क्षेत्र में स्थित है। यह स्थल स्थिति और अवशेषों के आधार पर अपना प्रत्यक्ष प्रमाण देता है। एक दंत कथा के अनुसार यहां से बंजारा गुजर रहा था कि उसे दो बार आवाज सुनाई दी, जब वह रुका, तो एक कन्या वट वृक्ष के नीचे घूंघट ओढ़े खड़ी थी, उसने कहां 'मिंजो भी बंगा पनाई देआÓ। इस पर बंजारा चूडियां पहनाने लगा, तो एक के बाद एक बाजू आगे करके माता ने बाईं तरफ के नौ बाजू आगे किए। हैरानी से बंजारा कन्या के मुंह की तरफ देखा, तो मां के तेज को सहन नहीं कर सका और मूच्र्छित हो गया, फिर माता ने उसे तीन मु_ियां छोटे—छोटे पत्थरों की दी। उसने वहां से भागने की कोशिश की और उन पत्थरों को थोड़ी—थोड़ी दूर फैंक दिया, जब वह घर पहुंचकर सोने लगा और अपनी कमीज उतारी और बचे हुए पत्थर जब जेब से निकाले, तो वह हीरे व मोती में परिवर्तित हो गए थे, फिर वह पछताया। प्राचीन तथ्यों से प्रमाणित हुआ कि दक्ष प्रजाति के यज्ञ के समय जब शिव व शक्ति को निमंत्रण नहीं दिया गया तो शक्ति ने अपने शरीर को उसी यज्ञ को समर्पित कर दिया। इस पर शिव क्रोधित हुए और उस शरीर को उठा कर ब्रह्माड में विचरण करने लगे। उस समय सब लोकों का तापमान बढऩे लगा। इसी समय भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया और शक्ति के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जब माता शक्ति के शरीर के 52 खंड पृथ्वी लोक पर गिरे। बाईं तरफ की नौ बाही (बाजू) नौबाही स्थल में गिरी, तब से यहां नौ देवियां एक साथ विराजमान हैं। पांडवों ने भी यहां पर कुछ समय बिताया था। उन्होंने एक तालाब का निर्माण भी किया। अब तालाब में शिव मंदिर है। तालाब से कमल लेकर सहस्रोनामों से ऋषि—मुनि शिव पूजा करते थे। यह क्षेत्र गुप्त अध्ययन केंद्र भी रहा। गुरु वशिष्ठ के शिष्य व ऋषि मुनिगण यहां शास्रार्थ करने आते थे, यहां धार्मिक गं्रथों का संग्रहालय भी था, जिस कारण इस क्षेत्र को संग्रोह नाम से भी जाना जाता था। 1678 ई. में औरंगजेब के आदेश पर यहां नौ देवियों तथा 11 शिव मंदिर, दो गुग्गा मंदिर को भी नष्ट कर दिया था लेकिन नौबाही माता मंदिर को नष्ट नहीं कर पाए थे। भ्रमरी सेना ने उनकी राह रोकी थी। इस क्षेत्र से एक अन्य घटना और जुड़ी है। रिवालसर झील के देवता ने अपने सेबक जाख को कहा कि मैं नौबाही जाना चाहता हूं। क्षेत्र को देख कर ब्रह्म मुहूर्त से पहले आ जाना। जाख समय रहते नहीं लौटा और पत्थर की शिला बन गया जिसे आज भी देखा जा सकता है। जनश्रृति के अनुसार कलियुग में ब्रह्मऋषि नौबाही आएंगे और नौबाही के तालेश्वर को 1151 हाथ गहरा करवाकर उसमें 108 नदियों तथा तीर्थों का जल भरने का आदेश देंगे, जो अगले चार लाख वर्षों तक रहेगा। आज से लगभग 70—80 वर्ष पहले यहां घना जंगल होता था, जिसमें नाना प्रकार के पेड़—पौधे होते थे व इस वन में असंख्य उल्लू रहते थे। एक बार प्रेम नाथ बाबा यहां तपस्या कर रहे थे, तो उल्लू उन्हें डराने लगे इस पर बाबा ने उन्हें श्राप दे दिया और वहां से इनका अस्तित्व ही खत्म हो गया। महमूद गजनवी ने 1009 ई. में जब मंदिर लूटने का प्रयास किया तो आकाश से काले गोले आग व पत्थर के बरसने लगे। आज भी मंदिर में एक गोला मौजूद है उसकी शिवलिंग के रूप में पूजा होती है। चार सोमवार लगातार दर्शन करना तथा पांच लाख पंच्चाक्षरी मंत्र का जप करके इस शिवलिंग को समर्पित करके साथ ही पांच अन्य स्थापित शिवलिंगों की चार सोमवार विधिवत पूजा करने से कालसर्प दोष, राहु, केतु के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं। यहां एक लाख महा मृत्युंजय मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। भगवान श्री हरि विष्णु ने सहत्र नामों से भगवान शिव की सहत्रों कमलों से पूजा की थी तब एक कमल कम हो गया तो विष्णु जी ने अपने कमल नयन को एक कमल के रूप में शिव को समर्पित कर दिया, इस पर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने श्री विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। ऐसी ही पूजा पूर्वकाल में नौबाही में भी होती रही है। तालाब से कमल लेकर ऋषि, मुनि शिवजी की पूजा करते थे। लम्बे शोध से पता चला है कि यहां लगभग 16 शिवलिंग प्राचीन काल से स्थापित थे। प्रत्येक शिविलिंग एक—एक मंदिर के अंदर स्थापित था। आज मात्र पांच मंदिर ही शेष बचे हैं, इनमें पांच शिवलिंग आज भी प्रतिष्ठित हैं, लेकिन 8 प्राचीन मंदिरों के अवशेष तथा 8 प्राचीन शिवलिंग जिनमें से दो शिवलिंग चार फुट ऊंचे तथा दो ढाई—ढाई फुट ऊंचे हैं आज भी मौजूद हैं। मंदिर के गर्भगृह में माता नौबाही की अति प्राचीन मूर्ति स्थापित है तथा शिव परिवार मंदिर, संतोषी मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, छह शिव मंदिर व दुर्गा के सभी रूप जिनमें दस महाविधाओं व दुर्गा के नौ रूपों सहित 108 देवी—देवीताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यहां पहुंचने के लिए सरकाघाट, मंडी, शिमला, चंडीगढ़, दिल्ली, अमृतसर, हमीरपुर, बिलासपुर, हरिद्वार, जम्मू—कश्मीर से सीधी बस सेवा उपलब्ध है और रहने के लिए सराय का भी उचित प्रबंध है। यह लेख तथ्यों पर आधारित है और लम्बे शोध के बाद ही लिखा गया है। लेखक के पास सभी प्रमाण हैं और सुरक्षित हैं। समय आने पर सभी प्रमाण जनता की सेवा में हाजिर होंगे। यह स्थान अर्थात माता नौबाही का अस्तित्व ५६ लाख साल पुराना है। भाषा विभाग से आग्रह किया जाएगा कि १००-२०० वर्ष न बताया जाए।
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