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                                मंत्र        अर्थ         सहित

मन्त्र से सरल अभिप्राय मनन करने से है। एवं मनन उन बातों का किया जाता है जो श्रेष्ठ, कल्याण कारक होती  हैं। वैदिक परम्परा  में ऋषियों ने दीर्घ तप तथा साधना के मार्ग से जीवन के जिन आधारभूत सत्यों का साक्षात्कार किया वे ही मन्त्र का रूप हैं। उनका ही अनुगमन करके ही आर्य श्रेष्ठ कहलाए। ऋषियों द्वारा खोजे गये वैश्विक धरोहर के रूप में ये मन्त्र ज्ञान एवं विज्ञान से परिपूर्ण हैं । ये आज न केवल देश में वरन् विदेशों में अनेक शोधों का विषय बने हुये हैं।

 करोड़ों-करोड़ों हिन्दू धर्मावलम्बियों की आस्था को अनुप्राणित रखने वाले ये मन्त्र उनके जीवन में विशिष्ट स्थान रखते है। ये उनके दैनिक प्रार्थना एवं उपासना के अनिवार्य भाग हैं। प्रायः ये मन्त्र भारतीय परम्परा में बाल्यकाल से ही संस्कार के रूप में कण्ठस्थ करा दिये जाते हैं। परन्तु सभी को मन्त्र का अर्थ ज्ञात नहीं रहता और इसका सीधा कारण है संस्कृत ज्ञान का न होना। इसी उद्देश्य को लेकर यहाँ हिन्दू उपासना में दैनन्दिनी प्रार्थना एवं उपासना में प्रयुक्त मन्त्रों को अर्थ सहित उपलब्ध कराया गया है। क्योंकि क्रिया के साथ ज्ञान आवश्यक हैं। यदि सम्यकतया जानकर किसी कार्य को किया जाता है तो उसका फल अलग होता है और बिना जाने किये गये कार्य का फल अलग होता है।

इसके साथ ही विभिन्न मन्त्रों से सम्बद्ध इष्ट देवी-देवताओं के भक्तिमय चित्रों का संकलन भी मन्त्र के साथ दिया गया है। इनको डाउनलोड किया जा सकता है प्रिन्ट कराया जा सकता है । प्रभु के नित्य दर्शन के लिये कम्प्यूटर के वाल-पेपर या स्क्रीन-सेवर के रूप में भी इनको लगाया जा सकता है।

इति शुभम् ।। शुभं भूयात्।।


           सरस्वती-प्रार्थना


या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।।







शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।



                                  

      MAA NAUBAHI देवी-कवच************** 


1.  प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

2.  उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।



                                       क्षमा-प्रार्थना-मन्त्र


                अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
                   दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।

 

ह्वानं न जानामि नजानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।। ।।2।।
 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।। ।।3।।


अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यों गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः।। ।।4।।

सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु।। ।।5।।

 

अज्ञानाद्विस्मृतेभ्रान्त्या यन्न्यूमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।।।6।।


कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।।।।7।।
 

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वर।। ।।